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चोखे चौपदे


है सदा काम ढग से निकला ।
काम बेढंगपन न देगा कर ॥
चाह रख कर किसी भलाई की ।
क्यों भला हो सवार गरदन पर ॥

बेहयाई, बहॅक, बनावट ने ।
कस किसे नहि दिया शिकजे में ॥
हित-ललक से भरी लगावट ने ।
कर लिया है किसे न पजे मे ॥

फल बहुत ही दूर, छाया कुछ नहीं ।
क्यों भला हम इस तरह के ताड़ हो ॥
आदमी हो और हो हित से भरे ।
क्यों न मूठी भर हमारे हाड़ हो ॥

काम आये, लोक के हित मे लगे ।
ठीक पानी की तरह दुख में बहे ॥
धन रहा पर-हाथ में तो क्या रहा ।
रह सके तो हाथ में अपने रहे ॥