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केसर की क्यारी
बीनना, सीना, परोना, कातना ।
गूंधना, लिखना न आता है कहे ॥
काम की यह बात है, हर काम मे ।
बैठता है हाथै बैठाते रहे।
जाय जिल से कुल कसर जी की निकल ।
बोलनेवाले बचन वे बोल दे ॥
खोलनेवाले अगर खोले खुले ।
तो किवाड़े छातियों के खोल दे ॥
दूसरा कोई अधम वेसा नही।।
पाप जिस से हैं कराती पूरियाँ।
वे पतित है पेट पापी के लिये।
छातियों में भोंक दे जो छूरियाँ।
रह सका काम का सुखी सुन्दर ।
कौन सा अग दुख अंगेजे पर ॥
भूल है जल गरम अगर छिड़कें ।
फूल जैसे नरम कलेजे पर ॥