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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/३५

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चोखे चौपदे


इस जगत का जीव वह है ही नहीं ।
लुट गये धन जी लटा जिस का नही ॥
हाथ की पूंजी गँवा, पड़ टूट में ।
है कलेजा टूटता किस का नहीं ॥

बेतरह बेध बेध क्यों देवे ।
भेद है जीभ और नेजे मे ॥
बात से छेद छेद कर के क्यों ।
छेद कर दे किसी कलेजे में ॥

पढ़ गये हाथ आ गया पारस ।
कढ़ गये गुन गया अँगेजा है ॥
चढ़ गये चाव चित गया चढ़ बढ़ ।
बढ़ गये बढ़ गया कलेजा है ॥

मिल न पाया मान मनमानी हुई ।
मोतियों के चूर का चूना हुआ ॥
दिलचलों के सामने बन दिलचले ।
दून की ले दिल अगर दूना हुआ ॥