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केसर की क्यारी


रंग उस का बहुत निराला है ।
हम न उस रग को बदल देखें ॥
फूल से वह कही मुलायम है ।
चाहिये दिल न मल मसल देवें ॥

हम उसे ठीक ठीक ही रक्खे ।
औ उसे ठीक राह बतलावें ॥
चाहिये दिल उड़ा उड़ा न फिरे ।
दिल पकड़ लें अगर पकड़ पावें ॥

प्रभु महक से है उसी के रीझते ।
पी उसी का रस रसिक भौंरे जिये ॥
चार फल केवल उसी से मिल सके ।
तोड़ते दिल-फूल को है किस लिये ॥

है निराली प्रभु-कला जिस में बसी ।
वह निराला आइना है फूटता ॥
टूटती है प्यार की अनमोल कल ।
तोड़ने से दिल श्रगर है टूटता ॥