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केसर की क्यारी
बिष-बटी होवे न क्यों हीरे जड़ी ।
जान उस को खा, गई खोई नहीं ॥
हाथ जो आ जाय सोने की छुरी ।
पेट तो है मारता कोई नहीं ॥
है कुदिन मे किसे मिले मेवे ।
जो मिले, आँख मूंद कर खा ले ॥
भूख मे साग पात क्यों देखे ।
जो सके डाल पेट मे डाले ॥
चाहिये सारे बखेड़े दूर कर ।
बात आपस की बिठाने को उठे ॥
आँख उठती दीन दुखियों पर रहे ।
पॉव गिरतों के उठाने को उठे ॥
भक्ति अधी भली नही होती ।
भाव होते भले नहीं लूंजे ॥
है अगर पॉव पूजना ही तो ।
पूजने जोग पाँव ही पूजे ॥