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सुनहली सीख
सैकड़ों ही कपूत-काया से ।
है भली एक सपूत की छाया ॥
हो पड़ी चूर खोपड़ी ने हो ।
अनगिनत बाल पाल क्या पाया ॥
जो भला है और चलता है सँभल ।
है भला उस को किसी से कौन डर ॥
दैव की टेढ़ी अगर भौहें न हो ।
क्या करेंगे लोग टेढ़ी भौह कर ॥
नेकियों मानते नही बी ।
क्यों उन्ही के लिये न बिख चख लें ॥
वे न तब भी पलक उठायेंगे ।
हम पलक पर अगर ललक रख लें ॥
बढ़ सके तो सदा रहें बढ़ते ।
पर बुरी राह में कभी न बढ़े ॥
चढ़ सकें तो चढ़े किसी चित पर ।
हम किसी की निगाह पर न चढ़े ॥