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चोखे चौपदे


गोद में उस की बड़े ही लाड़ से ।
है बहुत सी रेंग बिरंगी रुचि पली ॥
ढाल देती है निराले, ढंग में।
बात भड़कीली, ढंगीली, रसढली ॥

धन रतन धुन उन्हें नहीं रहती ।
है नहो मोहने उन्हे मेवे ॥
मानियों का यही मनाना है ।
मान कर बात, मान रख लेवे ॥

हो न भारी सके कभी हलके ।
है न छिपती खुली हुई बातें ॥
तोलने के लिये भला किस को ।
तुल गये कह तुली हुई बातें ॥

है बड़ी बेहूदगी जो काम की।
बात सुनने के लिये बहरे बने ॥
नो किसी गँव की न गहराई रही ।
जो न गहरी बात कह गहरे बने ॥