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केसर की क्यारी

छेद जिस मे अनेक हैं उस में।
सोच लो पौन का ठिकाना क्या॥
कढ़ गई कढ गई चली न चली।
साँस का है भला ठिकाना क्या॥

याद प्रभु को करें जियें जब तक।
लोक-हित की न बुझ सके प्यासें॥
हम गॅवा में इन्हें नहीं यों ही।
हैं बड़ी हो अमोल ए सॉसें॥

जी सका सब दिनों हवा पी जो।
उस बिचारे के पास ही क्या है॥
किस तरह से सुचित्त हो कोई।
साँस की आस पास ही क्या है॥

जो भले भाव भूल में डालें।
तो उन्हें प्यार साथ पोसा क्या॥
जो भला कर सको तुरत कर लो।
साँस का है भला भरोसा क्या॥