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केसर की क्यारी


बीज बो कर बुरे बुरे फल के।
कब भले फल फले फलाने से॥
दुख मिले क्यों न और को दुख दे।
दिल जले क्यों न दिल जलाने से॥

छोड़ दे छल, कपट, छिछोरापन।
देख कर छबि न जाय बन छैला॥
और माल पर न हो मायल।
दिल किसी मैल से न हो मेला॥

वह भरा है भयावनेपन से।
है हलाहल भरा हुआ प्याला॥
साँप काला पला उसी में है।
काल मे है कराल दिल काला॥

मान औरों की न मनमानो करे।
क्यों रहे अभिमान कर हठ ठानता॥
है इसी में मान रहता मान का।
ले मना, जो मन नहीं है मानता॥