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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/५१

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चोखे चौपदे

और का बार बार दिल दहला।
भूल कर मन न जाय बहलाया॥
तो उमंगें न आस को कुचलें।
मन अगर है उमग पर आया॥

बीज मीठे जाँय क्यों बोये नहीं।
है अगर यह चाह मीठे फल चखें॥
फ्त रखें, जो पत रखाना हो हमें।
चक है मन रख न जो हम मन रखे॥

सूझ कर सूझता नहीं जिन को।
वे उन्हें दूर को सुझाते हैं॥
काम है सूझ बूझ का करते।
पेट को आग जो बुझाते हैं॥

है बड़ा वह जो पराया हित करे।
हित हितू का कोन करता है नहीं॥
है भला वह, पेट जो पर का भरे।
कौन अपना पेट भरता है नहीं॥