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चोखे चौपदे

दिल भला किस तरह न जाता हिल।
जब कपट से न ठीक ठीक पटी॥
जीभ कैसे न लटपटा जाती।
बात कहते हुए लगी लिपटी॥

बान जिन को पड़ी बहकने की।
मानते वे नहीं बिना बहके॥
बेतुकापन नही दिखाते कब।
बेतुके बात बेतुकी कह के॥

जब सुलझना उन्हें नहीं आता।
तब गिरह खोल किस तरह सुलझें॥
चाल का जाल जब बिछाते हैं।
तब न क्यों बात बात में उलझे॥

लूटते है फँसा लपेटों में।
बेतरह हैं कभी कभी ठगते॥
कब नहीं बूझ से गये तोले।
हैं बतोले बहुत बुरे लगते॥