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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/७२

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केसर की क्यारी

जो किसी चित से नहीं पाती उतर।
दे बना बेचैन वह मूरत नहीं॥
अनबनों में पड़ न आँखों मे गड़े।
देखिये बिगड़े बनी सूरत नहीं॥

सब तरह के लाभ की बातें सुना।
रुचि बहुत ही आज बहलाई गई॥
किस तरह देखे बिना सूरत जियें।
वह हमें सूरत न बतलाई गई॥

भौह सीधी, हँसी बहुत सादी।
औ सरलपन भरी हुई बोली॥
हम भला भूल किस तरह देवें।
भूलती हैं न सूरते भोली॥

लालसा है रस बरसती ही रहे।
पर तुमारी आँख रिस से लाल है॥
यह चमेली है खिलाना आग में।
यह हथेली पर जमाना बाल है॥