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चोखे चौपदे

देख कर रंग जाति का बदला।
जाति का रंग है बदल जाता॥
देख आँखें हुईं लहू जैसी।
आँख में है लह उतर आता॥

देख दुख से अधीर सगी को।
है जनमसंगिनी लटी पड़ती॥
दाढ़ है दॉत के दुखे दुखती।
सिर दुखे आँख है फटी पड़ती॥

तब भलाई भूल जाती क्यों नहीं।
जब सचाई ही नही भाती रही॥
जोत तब कैसे चली जाती नही।
जब किसी को आँख ही जाती रही॥

कौन आला नाम रख आला बना।
है जहाँ गुन, है निरालापन वहीं॥
साँझ फूली या कली फूली फबी।
आँख को फूली फबी फूली नहीं॥