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अनमोल हीरे
एक से जो दिखा पड़े, उन का।
एक ही ढंग है न दिखलाता॥
है कमल फूलना भला लगता।
आँख का फूलना नहीं भाता॥
काम क्या अंजाम देगा दूसरा।
जब नही सकते हमीं अंजाम दे॥
दे सकेगा काम सूरज भी तभी।
जब कि अपनी आँख का तिल काम दे॥
पड़ बुरों मे संगतें पाकर बुरी।
सूझ वाला कब बुराई मे फँसा॥
देख लो काली पुतलियों मे बसे।
आँख के तिल में न कालापन बसा॥
तब भला मैली कुवैली औरते।
क्यों न पायेंगी निराले पूत जन॥
आँख की काली कलूटी पुतलियां।
जब जनें तिल सा बड़ा न्यारा रतन॥