पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/८७

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अनमोल हीरे

जो बड़प्पन है न तो कैसे बड़ा।
बन सके कोई बड़ाई पा बड़ी॥
देख लो कबि के बनाने से कहाँ।
दाँत की पाँती बनी मोती-लड़ी॥

सैकड़ों नेकियाँ किये पर भी।
नीच है ढा बिपत्ति कल लेता॥
जीभ है दाँत की टहल करती।
दाँत है जीभ को कुचल देता॥

कर सकेगे हित बने उतना न हित।
कर सकेगा हित सदा जितना सगा॥
दे सकेंगे सुख न असली दाँत सा।
देख लो तुम दाँत चॉदी के लगा॥

है बुरी लत का लगाना ही बुरा।
बन हठीली क्यों न वह हठ ठानती॥
हम अमी भर भर कटोरी नित पियें।
पर चटोरी जीभ कब है मानती॥