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मदन-मृणालिनी
 


लोटती हुई आंसुओं से हृदय की जलन को बुझाने लगी।

कई घंटे के बाद जब उसकी मां ने आकर किवाड खुलवाये,उस समय उसकी रेशमी साड़ी का आंचल भीगा हुआ, उसका मुख सूखा हुआ और आंखे लाल-लाल हो आयी थी । वास्तव में वह मदन के लिए रोई थी । इसी से उसकी यह दशा हो गयी । सचमुच संसार बड़ा प्रपंचमय है।


दूसरे घर में रहने से मदन बहुत घबड़ाने लगा । वह अपना मन बहलाने के लिए कभी-कभी समुद्र-तट पर बैठकर गद्गद हो सूर्य-भगवान का पश्चिम दिशा से मिलना देखा करता था, और जब तक वह अस्त न हो जाते थे, तब तक बराबर टकटकी लगाये देखता था । वह अपने चित्त में अनेक कल्पना की लहरें उठाकर समुद्र और अपने हृदय से तुलना भी किया करता था।

मदन का अब इस संसार में कोई नहीं है। माता भारत में जीती है या मर गयी---यह भी बेचारे को नहीं मालूम ! संसार की मनोहरता, आशा की भूमि, मदन के जीवन-स्त्रोत का जल मदन के हृदय-कानन पूर्वक आपारिजात, मदन के हृदय-सरोवर की मनोहर मृणालिनी भी अब उससे अलग कर दी गयी है।जननी, जन्मभूमि, प्रिय, कोई भी तो मदन के पास नहीं है ? इसी से उसका हृदय आलोड़ित होने लगा, और वह अनाथ बालक ईर्ष्या से भरकर अपने अपमान की ओर ध्यान देने लगा। उसको भली भांति विश्वास हो गया कि इस परिवार के साथ रहना ठीक नहीं है । जब इन्होंने मेरा तिरस्कार किया, तो अब इन्हीं के आश्रित होकर क्यों रहूँ ?

यह सोचकर उसने अपने चित्त में कुछ निश्चय किया और कपड़े पहनकर समुद्र की ओर घूमने के लिए चल पड़ा। राह में वह