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रसिया बालम
 


कि वह मुझे नही चाहती ?

सैनिक---प्रमाण चाहते हो तो (एक पत्र देकर) यह देखो।

युवक उसे लेकर पढ़ता है। उसमें लिखा था---

"युवक!

तुम क्यों अपना समय व्यर्थ व्यतीत करते हो? मै तुमसे कदापि नही मिल सकती। क्यों महीनों से यहां बैठे-बैठे अपना शरीर नष्ट कर रहे हो। मुझे तुम्हारी अवस्था देखकर दया आती है । अतः तुमको सचेत करती हूँ, फिर कभी यहां मत बैठना।

वही-

जिसे तुम देखा करते हो !"

युवक कुछ देर के लिये स्तम्भित हो गया । सैनिक सामने खड़ा था । अकस्मात् युवक उठकर खड़ा हो गया और सैनिक का हाथ पकड़कर बोला--मित्र ! तुम हमारा कुछ उपकार कर सकते हो? यदि करो, तो कुछ विशेष परिश्रम न होगा।

सैनिक --कहो,क्या है ? यदि हो सकेगा,तो अवश्य करूँगा।

तत्काल उस युवक ने अपनी उंँगली एक पत्थर से कुचल दी, और अपने फटे वस्त्र में से एक टुकड़ा फाड़कर तिनका लेकर उसी रक्त से टुकड़े पर कुछ लिखा, और उस सैनिक के हाथ में में देकर कहा--यदि हम न रहें, तो इसको उस निष्ठुर के हाथ में दे देना । बस, और कुछ नहीं।

इतना कहकर युवक ने पहाड़ी पर से कूदना चाहा; पर सैनिक ने उसे पकड़ लिया, और कहा--रसिया ! ठहरो !--

युवक अवाक् हो गया; क्योंकि अब पांच प्रहरी सैनिक के सामने सिर झुकाये खड़े थे, और पूर्व सैनिक स्वयं अर्बुदगिरि के महाराज थे।