महाराज आगे हुए और सैनिकों के बीच में रसिया । सब
सिंहद्वार की ओर चले । किले के भीतर पहुँचकर रसिया को साथ
में लिये हुए महाराज एक प्रकोष्ठ मे पहुँचे । महाराज ने प्रहरी को
आज्ञा दी कि महारानी और राजकुमारी को बुला लावे । वह
प्रणाम कर चला गया ।
महाराज---क्यों बलवन्त सिंह ! तुमने अपनी यह क्या दशा बना रक्खी है ?
रसिया---(चौककर) महाराज को मेरा नाम कैसे ज्ञात हुआ?
महाराज-बलवन्त ! मै बचपन से तुम्हें जानता हूँ और तुम्हारे पूर्वपुरुषों को भी जानता हूँ।
रसिया चुप हो गया। इतने में महारानी भी राजकुमारी को साथ लिये हुए आ गयीं।
महारानी ने प्रणाम कर पछा---क्या आज्ञा है ?
महाराज---बैठो, कुछ विशेष बात है। सुनो, और ध्यान से उसका उत्तर दो। यह युवक जो तुम्हारे सामने बैठा है, एक उत्तम क्षत्रिय कुल का है, और मैं इसे जानना हूं। यह हमारी राजकुमारी के प्रणय का भिखारी है । मेरी इच्छा है कि इससे उसका ब्याह हो जाय ।
राजकुमारी, जिसने कि आते ही युवक को देख लिया था और जो संकुचित होकर इस समय महारानी के पीछे खड़ी थी, यह सुनकर और भी संकुचित हुई । पर महारानी का मुख क्रोध से लाल हो गया। वह कड़े स्वर में बोलीं--क्या आपको खोजते-खोजते मेरी कुसुम-कुमारी कन्या के लिये यही वर मिला है ?वाह!अच्छा जोड़ मिलाया । कंगाल और उसके लिये निधि; बन्दर और उसके गले में हार; भला यह भी कहीं सम्भव है ? आप शीघ्र अपने भान्तिरोग की औषधि कर डालिये । यह भी कैसा परिहास है ! (कन्या से) चलो बेटी, यहां से चलो।