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छाया
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सहमकर, उसी स्थान पर खड़े हो गये । कुनाल ने उन अश्वारोहियों से पूछा---तुम लोग इन्हें क्यों सता रहे हो ? क्या इन लोगों ने कोई ऐसा कार्य किया है, जिससे ये लोग न्यायतः दण्डभागी समझे गये हैं ?

एक अश्वारोही, जो उन लोगों का नायक था,बोला---हम लोग राजकीय सैनिक है और राया की आज्ञा से इन विधर्मी जैनियों का बध करने के लिये आये है । पर आप कौन है, जो महाराज चक्रवर्ती देवप्रिय अशोकदेव की आज्ञा का विरोध करने पर उद्यत है ?

कुनाल---चक्रवत्ती अशोक ! वह कितना बड़ा राजा है ?

नायक---मूर्ख ! क्या तू अभी तक महाराज अशोक का पराक्रम नहीं जानता, जिन्होंने अपने प्रचण्ड भुजदंड के बल से कलिंग-विजय किया है ? और, जिनकी राज्यसीमा दक्षिण में केरल और मलयगिरि, उत्तर में सिन्धुकोश-पर्वत, तथा पूर्व और पश्चिम में किरात-देश और पटल है ! जिनकी मैत्री के लिये यवन-नृपति लोग उद्योग करते रहते हैं, उन महाराज को तू भली भांति नहीं जानता ?

कुनाल---परन्तु इससे भी बड़ा कोई साम्राज्य है, जिसके लिये किसी राज्य की मैत्री की आवश्यकता नहीं है ।

नायक---इस विवाद की आवश्यकता नहीं है, हम अपना काम करेंगे।

कुनाल---तो क्या तुम लोग इन अनाथ जीवों पर कुछ दया न करोगे?

इतना कहते-कहते राजकुमार को कुछ क्रोध आ गया, नेत्र लाल हो गये । नायक उस तेजस्वी मूर्ति को देखकर एक बार फिर सहम गया।

कुनाल ने कहा--अच्छा, यदि तुम न मानोगे, तो यहां के शासक से जाकर कहो कि राजकुमार कुनाल तुम्हें बुला रहे हैं।

नायक सिर झुकाकर कुछ सोचने लगा। तब उसने अपने एक