पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/११९

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जगद्विनोद (११९) दोहा--निरखि नेकु नीको बनो, या कहि नन्दकुमार । सुभुज मेलि मेल्यो गरे, गजमोतिनको हार॥ ३४ ॥ पिय जु होइ परदेश में, सो प्रवास उर आन । जावे होत बधून को, अति संताप निदान ॥ ३५ ॥ मौ प्रवास द्वै भांति को, इक भविष्य इक भूत । तिनके कहत उदाहरण, रस ग्रन्थनके सूत ॥ ३६॥ भविष्यत् प्रवासका उदाहरण-सवैया । औसर कौनकहासमयोकह काज विवादये कौनसी पावन । त्यों पदमाकरधीरसमीरउसीर भयो तपिकै तनतावन ।। चैतकी चांदनीचारुलखेचरचाचलबेकी लगे जु चलावन । कैसी भई तुम्हें गंगकी गैल में गीत मदारनके लगेगावन । दोहा-रमन गमन सनिशशिमुखी, भई दिवसको चन्द ॥ परखि प्रेमपूरण प्रार, निरखि रहेनदनंद ॥३८॥ नये प्रवासका उदाहरण- सवैया ।। कान्ह परो कुब्जाकेकलोलनिडोलनि छोड़दई हरभांती ॥ माधुरी मूरति देखिबिनापदमाकरलागै न भूमि सोहाती । क्या कहिये उनसों सजनी यह बात है आपन भागसमाती। दोष बसंतको दीजै कहाउलहैनकरीलकीडारनपाती ॥३९॥ पुनर्यथा । कविच-रैन दिन नैनन वे बहतो न नीर कहा, करतौ अनंग को उमंग शर चापतौ । कहै पदमाकर मुराम, बाग बन कैसो, .