(१२८) जगद्विनोद । हुलसि गात रघुनाथको, बख्तर में न समात ॥८४॥ अथ दया वीरका वर्णन ।। दोहा--दया वीरमें दीन दुख, वर्गत आदि विभाव । दूरि करब दुख मृदु कहब, इत्यादिक अनुभाव।।८५॥ सुकत चपलता औरहूं, तहँ सञ्चारी भाव । दयावीर वर्णत सबै, याही विधि कविराव ॥ ८६ ॥ अथ दया वीरवर्णन सवैया ॥ पापी अजामिल पार कियोजेहि नाम लियो सुतहीको रायन त्यों पदमाकर लातलगेपर विप्रहूके पग चौगुने चायन । को असदीन दयाल भयो दशरथके लालसे सूधे सुभायन दौरे गयंदउबारिबेको प्रभुबाहन छोडिउबाहने पायन ॥८७॥ दोहा-मिले सुदामा सों जुकार, समाधान सन्मान। पग पलोटि पगश्रम हरेउ, येप्रभु दयानिधान ।। अथ दानवीर वर्णन ॥ दोहा-दान समयको ज्ञान पुनि, याचक तीरथ गौन । दान वीर के कहत हैं, ये विभाव मतिभौन ॥ ८९ ॥ तृण समान लेखत सुधन, इत्यादिक अनुभाव । बीडा हरषादिक गनौ, तहँ संचारी भाव ॥ ९० ॥ दान वीरका उदाहरण ॥ कवित्त--बगसि वितुंड दये झुण्डनके झुण्ड रिपु, मुण्डनकी मालिका दई ज्यों त्रिपुरारीको। कहै पदमाकर करोरनको कोष दये, 7
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