पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/५६

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7 जगद्विनोद। नेक रसनाहूं त्यों भरी न कछु हांगीरी । एदे पै रह्यो ना प्राण मोहन लटूपै भटू, टूक टूक लैकै जो छटूक भई आंगीरी ७४ ॥ दोहा-रह्यो मान मनकी मनहिं; सुनत कान्हके बैन । बरजि बरजि हारे तऊ, रुके न गरजी नेन ॥७५॥ अथ अघमाका लक्षण ।। दोहा-ज्योंही ज्योंपियहितकरत, त्योत्योंपरतिसरोष । ताहि कहतअधनासुकवि, निठराईकी कोर ॥ ७६ ॥ अथ अधमाका उदाहरण - सवैया ॥ बैउरझायरिझायबेकोरसरागक वित्तनकी धनिछाई ॥ त्यों पदमाकर माहसकै कबहू नविषादकी बात सुनाई ॥ सपनेहू कियोन कछु अपराधसुआपने हाथनसेज बिछाई ॥ प्यौपरिपांपमनाय जऊतउपापिनिको कछुपरिन आई ॥७७॥ दोहा-मान ठानि बैठी इतौं, सुवश नाह निज हेरि । कबहुँजु परवश होहि तो, कहा करैगी फेरि ॥७८॥ इति नायिका निरूपण ||अथ नायक निरूप्यते ॥ दोहा--सुन्दरगुण मंदिर युवा, युवति विलोकै जाहि । कविता रागरसज्ञ जो, नायक कहियेताहि ।।७२॥ अथ नायक लक्षण ॥ कवित्त--जगत वशीकरण ही हरण गोपिनको, तरुण त्रिलोकमें न तैसी सुन्दराई है। कहै पदमाकर कलानिको कदम्ब,