पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/६४

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The जगद्विनोद । दोहा-सुनत कहानी कान्हकी, तीय तजी कुल कान । मिलन काजलागीकरन, दूतिनसों पहिचान २६॥ अथ चित्रदर्शन--सवया ।। चित्रके मन्दिरते इक सुन्दरीक्यों निकसीजिन्ह नेहनसाहै त्यों पदमाकर खोलि रही हग बोलै न बोलअडोलदशा है । भृङ्गी प्रसंगरौं भृङ्गाही होत जुपै जगमें जड़कीट महा माहनमीतकोचित्रलिखे भई चित्रहीसीतौ विचित्र कहाहै ॥ दोहा-हरषि उठति फिरि२ परखि, फिरपरखनचखलाय । मित्रचित्रपटकोनिया, उरसों लेति लगाय ॥२८॥ अथ स्वप्नदर्शन-सवैया ॥ सनैसंकेतमें सोधेसनी सपने में नई दुलही तु मिलाई ।। होहूं गही पदमाकर दौरिसो भौंह मरोरतिसेजलों आई ॥ यामनकी मनहीं में रही जुसमेटि तियालै हिया सों लगाई । आँखें गई खुलिसीवीसुनै सखिहाइमैं नीवीनखोलनपाई । दोहा-सुन्दरि सपने में लख्यो, निशिमें नन्दकिशोर । होत भोर लै दधि चली, पूंछत सकरी खोर ॥३०॥ प्रत्यक्ष दर्शनका उदाहरण-सवैया ।। आई भले हो चली मखियानमें पाईगोविन्द किरूपकिझाँकी। त्यों पदमाकर हारदियो गृहकाज कहा अरुलाज कहांकी ॥ है नखते शिखलों मृदुमाधुरीबांकियै भौंहैं विलोकनिबाँकी । देखि रहीगटारत नाहिं नैसुन्दर श्यामसलोनेकि झाँकी । दोहा-हौं लखि आई लखहुगी, लसै न क्यों लोग ।