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पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/८१

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जगद्विनोद । (८) आजहौं गईही बाट बंशी बटवारेकी । क्रीडत विलोकि नन्दवेषहू निहारि भई, भई है विकल छबि कान्हरतिवारेकी । कहै पदमाकर लटू है लोट पोट भई, चितमें चुभी जो चोट चाय चटवारेकी ।। बावरी लौ बुझति विलोकित कहां तू बीर, जाने कहा कोऊ प्रेम प्रेम हटवारेकी ॥२६॥ दोहा-आँखिनते आंसू उमड़ि, परत कुचनपर आन । जनु गिरीशके शीशपर, डारत भषि भुकतान ।। तनमनकी न सम्हार जहँ, रहै जीवगन गोय । मो शृङ्गार रसमें प्रलय, वर्णत सब कवि कोय । प्रलयका उदाहरण-सवैया ॥ येनंदगांवते आये इहांउत आई सुता वह कौन हूं ग्वाल की । त्यों पदमाकर होत जुराजुरी दोउनफागकरीइह ख्याल की। डीठ चली उनकी इनपै इनकी उनपै चली मुठि गुलालकी डीठसीडीठ लगीउनको इनके लगी मुठिसी मुठिगुलालकी। दोहा-दैचखचोट अंगोट मग, वजी युवति बन माहिं । खरी विकल कबकोपरी, सुधिशरीरकी नाहिं ॥३०॥ पिन विछोह सम्मोहकै, आलसही अवगाहि । छिन इनवदन विकासिबो, जृम्भाकहिये ताहि ॥ म्भाका उदाहरण-सवैया ॥ आरसमों रससों पदमाकर चौंकि परेचखचुम्बनके किये। ६