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पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/८८

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(८८) जगद्विनोद । अथ हेलाहाव वर्णन-सदैया । ‘फागकेभीर अमीरनत्योंगहि गोविन्दलैगई भीतरगोरी । भायकरी मनकी पदमाकर ऊपरनाय अबीरकि झोरी ॥ छीनपितम्बर कंबरतें सुबिदादई मीडकपोलनरोरी । नयननचायकहीमुसुक्यायलला फिर आइयो खेलन होरी ॥ दोहा--हरविरचिनारदनिगम, जाको लहत न पार । ता हरिको गहिगोपिका, गरबिगुहावतबार ॥७२॥ हानि क्रियाकछु नियएमप, बोधन करै जुभाव । रसग्रन्थनमें कहत हैं, तासों बोध कहाव ॥ ७३ ॥ अथ वोधकहाव वर्णन-सवेया ॥ दाऊअटानचढ़ पदमाकर रेखदुहका दुवोछबि छाई । त्योंद्रजबाल गोपालतहां वनमाल तमालहिकी दरशाई ॥ चन्द्रमुखी चतुराई करी तबऐसीकछू अपने मनभाई । अञ्चलऐंचेउरोजनतें नंदलालको माउतीमाल दिखाई ॥ दोहा--निरखिरहे निधि बनतरफ, नागर नन्दकुमार । नोरि हीरको हार तिय, लगी बगारन बार !!७॥ इति श्रीमवंशावतंस श्रीमन्महाराजाधिराजराजेन्द्र श्रीसवाई- महाराजजगतसिंहाज्ञयामथुरास्थाने मोहनलालभट्टा- स्मजकविपद्माकरविरचितजगद्विनोदनामकाव्ये अनुभावप्रकरणम् ।। ३ ।।