पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/११४

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तीसरा अङ्क―छठा दृश्य
[दोनों प्रार्थना करते हैं]

नाथ, स्नेह का लता सोंच दो, शान्ति जलद वर्षा कर दो।
हिसा धूल उड़ रही मोहन, सूखी क्यारी को भर दो॥

समता की घोषणा विश्व में, मन्द्र मेघ गर्जन कर दो।

हरी भरी हो स्मृष्टि तुम्हारी, करुणा का कटाक्ष कर दो॥