पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/११५

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सातवाँ दृश्य
स्थान―कानन
[ मनसा और वासुकि ]

वासुकि―बहन, अब क्या करना होगा? तक्षक वन्दी है। उनके साथ मणिमाला भी है। पहले के भयङ्कर यज्ञ में जो बात नहीं होने पाई थी, वही इस बार अनायास हो गई। अपनी मूर्खता से आज नागराज स्वयं पूर्णाहुति बनने गए।

मनसा―भाई, मुझसे क्या कहते हो! क्या मैं उस उत्तेजन की एक सामग्री नहीं हूँ? हाय हाय! मैंने ही तो इस नाग जाति को भड़काया था। आज देख रहे हो, यहाँ कितने घायल पड़े है! जाति के अवशिष्ट थोड़े से लोगो में भी कितने ही बेकाम हो गए, और कितने ही जलाए गए। जान पड़ता है कि इस जाति के लिये प्रलय समीप है। इस परिणाम का उत्तरदायित्व मुझ पर है। हा, मैंने यह क्या किया!

[ कुछ नागों का प्रवेश ]

नाग―नागमाता! आपकी कृपा और सेवा शुश्रूषा से अब हम लोग इस योग्य हो गए हैं कि फिर युद्ध कर सकें। आज्ञा दीजिए, अब हम लोग क्या करें। सुना है, नागराज वन्दी हो गए हैं। पहले उनका उद्धार करना चाहिए।