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जनमेजय का नाग-यज्ञ

यज करना ही पड़ेगा, फल चाहे जो हो। यज्ञेश्वर भगवान् की इच्छा! जाओ जनमेजय, तुम्हारा कल्याण हो।

[ जनमेजय प्रणाम करके जाता है। वेदव्यास ध्यानस्थ होते हैं। शीला, सोमश्रवा, आस्तीक तथा मणिमाला का प्रवेश। ]

शीला―आर्यपुत्र, अभी तो भगवान ध्यानस्थ हैं।

सोमश्रावा―तब तक आओ, हम लोग इस मन्त्र मुग्ध बन की शान्त शोभा देखें। क्यो भाई आस्तीक, रमणीयता के साथ ऐसी शान्ति कहीं और भी तुम्हारे देखने मे आई है?

आस्तीक―आर्यावर्त के समस्त प्रान्तों से इसमे कुछ विशेषता है। भावना को प्राप्ति और कल्पना के प्रत्यक्ष की यह सङ्गम- स्थली हदय मे कुछ अकथनीय आनन्द, कुछ विलक्षण उल्लास, उत्पन्न कर देती है! द्वेप यहाँ तक पहुँचते पहुँचते थककर मार्ग मे ही कही सो गया है। करुणा आतिथ्य के लिये वन लक्ष्मी की भाँति आगतो का स्वागत कर रही है। इस कानन के पत्तो पर सरलता- पूर्ण जीवन का सच्चा चित्र लिखा हुआ देखकर चित्र चमत्कृत्त हो जाता है!

मणिमाला―भाई, मुझे तो इस दृश्य जगत् मे क्षण भर स्थिर होने के लिये अपनी समस्त वृत्तियो के साथ युद्ध करना पड़ रहा है। वह करुणा की कल्पना, जो मुझे उदासीन बनाए रखती थी, यहाँ आने पर शान्ति मे परिवर्तित हो गई है। मानव जीवन को जो कुछ प्राप्त हो सकता है, वह सब जैसे मिल गया हो।