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जनमेजय का नाग-यज्ञ

आस्तीक―यायावर वंशो आस्तीक आर्य को प्रणाम करता है।

व्यास―कल्याण हो! सद्बुद्धि का उदय हो!

शीला―आर्य! उग्रश्रवा को पुत्रवधू भगवान् के चरणो मे प्रणाम करती है।

मणिमाला―महात्मा के चरणो मे नागराज बाला मणिमाला प्रणाम करती है।

व्यास―कल्याण हो! विश्व भर के कल्याण मे तुम सब दत्तचित्त हो! वत्स सोमश्रवा, तुम राज पुरोहित हुए, यह अच्छा ही हुआ। पर देखो, धर्म का शासन बिगड़ने न पावे।

सोमश्रवा―आय, आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने कर्तव्य मे दृढ़तापूर्वक लगा रहूँ।

व्यास―वत्स आस्तीक, तुम्हारा प्रादुर्भाव किसी विशेष कार्य के लिये हुआ है। आशा है, तुम वह कार्य सम्पन्न करोगे।

आस्तीक―आर्य, आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने कर्तव्य के पालन मे सफल होऊँ।

व्यास―पुत्री शीला, तुम आर्य ललनाओ के समान ही अपने पति के सत्कर्मों मे सहकारिणी बनो।

शीला―भगवान् को जैसी आज्ञा! इसी प्रकार आशीर्वाद देते रहिए।

व्यास―नागराज कुमारी, अष्ट शक्ति ने तुम्हारे लिये भी एक बड़ा भारी कर्तव्य रख छोड़ा है, जो इस आर्य और अनार्य