जीवन चरित्न। काम न चलेगा। आपका पूरा विश्वास था कि लंबे धागेकी रूईसे बारीक माल तैयार होसकता है। इसी विचारसे आपने एक कम्पनी खोली जिसका नाम पड़ा "स्वदेशी"।
नागपुर के विक्टोरिया गार्डन्के नजदीक जमीन लीगई और वहीं कारखाना खोलने का इरादा किया गया। उसी वक्त बम्बई प्रांत की सबसे बड़ी मिल "धरमसी" नीलाम हो रही थी। उसमें कुल ५० लाख रुपये खर्च हुए थे लेकिन साता महोदयने उसको १२॥ लाख रुपये पर खरीदा। लेकिन बादमें मालूम हुआ कि उस मिलमैं बहुतसी खराबियां हैं। ताता महोदयको इसके लिये बहुतसी कठिनाइयां उठानी पड़ीं लेकिन आप हताश होनेवाले आदमी नहीं थे।
अन्तमें इम्प्रेस मिल की तरह इसमें भी फायदा होने लगा।
इन दो कम्पनियोंके संबंधमें दो एक और बातें बतलाना जरूरी है। आम तौरसे एजेण्टों को तैयार मालपर १ पैसा फी पाउंड कमीशन मिलता था। इस हिसाबसे ताता महोदयको ६० हजार रुपये सालानासे कम कमीशन नहीं मिलता। लेकिन आपका खास मतलब कारीगरीको बढ़ाना था, न कि अपना पाकेट भरना। इसीलिये आप सिर्फ ६ हजार लेते थे। बादमें और भी कमी कर दी गई।
कपड़ेके कारखानेमें आपने एक और बड़ा सुधार किया। आपने सभी पुरानी कलों को निकालकर रिंग चरखों को लगाया। मिसिरदेशकी लंबे धागेवाले कपास की खेतीका