पृष्ठ:जमसेदजी नसरवानजी ताता का जीवन चरित्र.djvu/३६

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तीसरा अध्याय।


देशभक्ति और परोपकार।

इसमें संदेह नहीं कि मिस्टर ताताके जीवनका महत्व इस बातमें है कि उन्होंने करोड़ों रुपये अपने बाहुबलसे उत्पन्न किये और ऐसे ढंगसे उत्पन्न किये जिसमें अपने देश और देशवासियो का बड़ा उपकार हुआ। लेकिन इससे भी बढ़कर आपकी बड़ाई इस बातमें थी कि आपने मिहनतका कमाया हुआ धन परोपकार और जाति सेवामें लगाया। जहां व्यवसायमें आपने पानीसे रुपये पैदा किये, वहाँ देश सेवाके काममें आपने रुपये को पानीकी तरह बहाया।

आपका सबसे पहला परोपकारका काम आपका शिक्षा फंड है। इस देश में प्राचीनकालमें शिक्षा मुफ्त होती थी। विद्या बेचना पापही नहीं घोर पाप समझा जाता था। विद्यादानसे बढ़कर कोई दान नहीं समझा जाता था, क्योंकि विद्या धनसे बढ़कर कोई धन नहीं माना जाता था। विद्योपार्जनका महत्व तब खूब समझा जाता था। इसीलिये विद्यालयोंके लिये बाहरी टीम टामकी आवश्यकता न थी। अब मामूली देहाती मदरसेके लिये डेढ़ हजारकी इमारत चाहिये, पचास साठ हजारका ठिकाना हो तो ऐंग्लो मिडिल स्कूल चलै, कई लाखमें हाई स्कूलका