पृष्ठ:जमसेदजी नसरवानजी ताता का जीवन चरित्र.djvu/४२

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जीवन चरित्र।


विद्यार्थीकी सहायता रोक दीजाती है और ४ फीसदी सूद जोड़ कर रुपया फौरन वापस करना पड़ता है। जब विद्यार्थी पास होकर रुपया कमाने लगता है, वादेके मुताबिक मै सूद उसको एक मुश्त या किश्तवार कर्जा अदा करना पड़ता है। सहायता पानेके लिये कमेटीके मंत्रीके नाम नवसारी बिल्डिंग्स, फोर्ट, बंबई के पते पर अप्रैलके महीनेमें दरख्वास्त भेजनी चाहिये।

इस फंडकी स्थापना सन् १८९२ ई॰ में हुई थी। पहले सिर्फ पारसी इससे फायदा उठा सकते थे लेकिन सन् १८९४-१८९५ ई॰ में नियम इतने उदार बनादिये गये कि हर एक हिन्दुस्थानी मदद लेसकता है। अब तक ३८ सज्जनोंने इससे फायदा उठाया है जिनमें २३ पारसी और १५ दूसरे लोग हैं। इनमे कुछ लोग सिविल सर्विसवाले हैं, कुछ डाक्टर, कुछ इंजीनियर और बाकी लोग दुसरे मुहकमों में हैं।

इसके बाद भी ताता महोदयने अनेक परोपकारके काम किये। वैसे तो इनका प्रत्येक कल कारखाना, इनका हर एक उद्योग, देशभक्ति और परोपकारके भावसे प्रेरित थे, लेकिन इनकी देश भक्तिका अतुलनीय काम था इनका रिसर्च इन्स्टीट्यूट। शिक्षा फंडके संबंधमें आपने देखा है कि किस तरह ताताजीने होनहार नवयुवकोंको विलायत भेजकर देशहित किया है। अनुभवी ताताने सोचा कि इस गरीब देश में बहुत थोड़े युवक सहायता पानेपर भी विलायत जा सकते हैं। तिसपर बिरादरीका झगड़ा और विद्यार्थियोंके खुद बिगड़ जानेका डर। इन सब बातोंको