और बादमें हमेशाके लिये ५० हजार रुपये साल कर दिये गये। भारत सरकारले भी ३० हजार रुपये साल मंजूर किये। अब आशा थी कि काम बहुत जल्द शुरू होजायगा। लेकिन ताता महोदयकी अकाल मृत्युने कुछ दिनों के लिये रुकावट डाल दी। साधारण अवस्थामें तो कामही छोड़ दिया गया होता लेकिन ताताजीके सुयोग्य लड़के और कमेटीके सदस्य कमजोर आत्मा के आदमी नहीं थे। इसलिये स्कीम फिरसे हाथमें ली गई। इमारतें करीब करीब सब तैयार होगई। पढ़ाई भी शुरू होगई। ग्रैजुयेट होने के बादकी उच्च विज्ञान शिक्षासे हमारे युवक लाभ उठा रहे हैं। परमात्मा इस संस्थाकी दिन दिन उन्नति करै।
कुछ लोगोंका विचार है कि ताताजीने कलाकौशल और रोजगारको छोड़कर और किसी मार्गसे देशकी सेवा नहीं की है। भावानने गीतामें कहा है कि स्थिर चित्तसे एक लक्ष्य बना कर काम करना चाहिये। अनेक कामोंपर अपना मन डांवाडोल करनेवाला आदमी एक भी काम अच्छी तरह नहीं कर पाता है। इसी नियामानुसार ताताजीने कलाकौशल को अपना मुख्य उद्देश्य बना लिया। उस मुख्य कर्तव्य पालनके बाद जो समय बचता था उसको आप राजनीति तथा दूसरे कामों में लगाते थे। बजट, रेलवे इत्यादि आय व्यय संबंधी विषयोंका आपको बहुत अच्छा अनुभव था। टकसालके विषयमें सन् १८९२ ई॰ में जो आंदोलन हुआ था उसमें ताताजीने बड़ी योग्यता दिखलाई थी।