लाट साहबकी रायमें ताताजीमें दूसरी खास बात थी सादगी! अपने धनको आपने अपनी शान शौकमें न लगाकर सदा परोपकार और व्यवसायमें लगाया।
जस्टिस तैयबजीने ताताजीके प्रति आदर और प्रेम दिखलाते हुए आपके अनेक गुणोंकी प्रशंसाकी। आपने एक फारसी कवि के निम्नलिखित वचनको उद्धृत किया "ऐ मुसलमान! मुझे क्या करना है? मैं खुद अपनेको नहीं पहचानता हूं। मैं न तो इसाई हूं, न यहूदी और न मुसलमान। मैं न तो पूरब का हूँ और न पश्चिमका। मैं न तो ईरानसे आरहा हूं और न खुरासान से" तैयबजीने कहा कि कविने कहा है कि न वह पूरबका है और न पश्चिमका, लेकिन ताता महोदयने अपने कामोसे दिखला दिया है कि वे पूरब और पश्चिम दोनोंके थे। अपने व्यवसाय, अपने परोपकार, अपनी उदारता और अपने दानके कारण ताताजी पूरब और पश्चिम दोनोंके आदमी कहला सकते हैं, मुसलमान भी कहे जासकते हैं और पारसी भी कहला सकते हैं। अपने सादे किंतु प्रभावशाली और दयापूर्ण जीवनके कारण आप मुसलमान हिंदू और पारसी सब कुछ कहे जासकते हैं। हिन्दुस्तान के हर सूबेके लोग आपको प्यार करते थे, आपका आदर करते थे। मिस्टर ताताके चरित्रका ठीक पता उनके रिसर्च इन्स्टीट्यूटसे लगता है। इससे न सिर्फ उनकी उदारता मालूम होती है बल्कि आपकी कल्पना शक्तिका भी पता लगता है। सर भालचंद्रकृष्णने कहा कि ताताजीको मृत्युसे सारा