पृष्ठ:जमसेदजी नसरवानजी ताता का जीवन चरित्र.djvu/५६

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जीवन चरित्र।


नहीं सकती है। हमारे अधःपतनका मुख्य कारण यह है कि हम अपने व्यवसायको प्रेमसे, हंसते हुए, हौसला भरे दिलसे नहीं चलाते हैं।

इस देशमें कई तरहके दान प्रचलित हैं, कुछ लोग तो अपना नाम करनेके लिये दान करते हैं, कुछ लोग आंख मूंदकर आलसी लोगोंको भोजन करानाही दान समझते हैं, कुछ ऐसे सज्जन हैं कि वे दीन दुखियोंके दुःख दूर करने के लिये उनको अन्न वस्त्र देते हैं।

लेकिन ताताजीका दान इन सबसे निराले ढंगका था। अगर कोई ताताजीसे पूछता तो वे कहते कि यह व्यवसाय है, दान नहीं। बात सच है, लेकिन इस तरहका व्यवसायही सच्चा दान कहला सकता है। आपके दान आपके देशवासियोंको परिश्रमी और सदाचारी बनाते हुए उनके दिलको हौसलेसे भर देते थे। इस देशके निर्जीव और उत्साह हीन निवासियोंके लिये इससे बढ़कर और क्या उपकार होसकता है!

कुछ लोग पूछते हैं कि रिसर्च इन्स्टीट्यूटसे क्या फायदा है। शिक्षा आरंभ होनेके पहले भी इस संस्थासे बड़ा लाभ हुआ है। इसने देशके शिक्षित लोगोंको जगा दिया है। इसके कारण हमारे पढ़े लिखे लोगों में उत्साह जाग उठा है। वे अपने पूर्वजोंके 'सादी रहनी ऊंची करनी' आदर्श पर चलते हुए, आराम-तलबी पर लात मारते हुए, परिश्रमसे जीवन बिताते हुए, साधारण भोजनपर जीवन व्यतीत करते हुए खोजका काम करैंगे।