पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/१४७

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हाँ, पहले थोड़ा-सा पानी और एक कपड़ा तो देना।' प्रेमा ने चकित होकर पूछा-'क्यों?' 'यों ही कुछ चमड़ा छिल गया है। उसे बाँध लूँ?' 'अरे, तो क्या कहीं लड़ाई भी हुई है?' 'हाँ, तीन-चार वजीरी मिल गये थे।' 'और यह?'-कहकर प्रेमा ने सलीम को देखा। सलीम भय और क्रोध से सूख रहा था! घृणा से उसका मुख विवर्ण हो रहा था। 'एक हिन्दू है।' नन्दराम ने कहा। 'नहीं, मसलमान हैं।' 'ओहो, हिन्दुस्तानी भाई! हम लोग हिन्दुस्तान के रहनेवालों को हिन्दू ही-सा देखते हैं। तुम बुरा न मानना।'-कहते हुए नन्दराम ने उसका हाथ पकड़ लिया। वह झुंझला उठा और प्रेमकुमारी हँस पड़ी। आज की हँसी कुछ दूसरी थी। उसकी हँसी में हृदय की प्रसन्नता साकार थी। एक दिन और प्रेमा का मुसकाना सलीम ने देखा था, तब जैसे उसमें स्नेह था। आज थी उसमें मादकता, नन्दराम के ऊपर अनुराग की वर्षा! वह और भी जल उठा। उसने कहा-'काफिर, क्या यहाँ कोई मुसलमान नहीं है?' 'है तो, पर आज तो तुमको मेरे ही यहाँ रहना होगा।' दृढ़ता से नन्दराम ने कहा। सलीम सोच रहा था, घर देखकर लौट आने की बात! परन्तु यह प्रेमा! ओह, कितनी सुन्दर! कितना प्यार-भरा हृदय! इतना सुख! काफिर के पास यह विभूति! तो वह क्यों न यहीं रहे? अपने भाग्य की परीक्षा कर देखे! सलीम वहीं खा-पीकर एक कोठरी में सो रहा और सपने देखने लगा-उसके हाथ में रक्त से भरा हुआ छुरा है। नन्दराम मरा पड़ा है। वजीरियों का सरदार उसके ऊपर प्रसन्न है। लूट में पकड़ी हुई प्रेमा उसे मिल रही है। वजीरियों का बदला लेने में उसने पूरी सहायता की है। सलीम ने प्रेमा का हाथ पकड़ना चाहा। साथ ही प्रेमा का भरपूर थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा। उसने तिलमिलाकर आँखें खोल दीं। सूर्य की किरणें उसकी आँखों में घुसने लगीं। बाहर अमीर चिलम भर रहा था। उसने कहा-'नन्दा भाई, तूने मेरे लिए पोस्तीन लाने के लिए कहा था। वह कहाँ है?' वह उछल रहा था। उसका ऊधमी शरीर प्रसन्नता से नाच रहा था। नन्दराम मुलायम बालोंवाली चमड़े की सदरी-जिस पर रेशमी सुनहरा काम था, लिये हुए बाहर निकला। अमीर को पहनाकर उसके गालों पर चपत जड़ते हुए कहा -'नटखट, ले, तू अभी छोटा ही रहा। मैंने तो समझा था कि तीन महीनों में तू बहुत बढ़ गया होगा।' वह पोस्तीन पहनकर उछलता हुआ प्रेमा के पास चला गया। उसका नाचना देखकर वह खिलखिला पड़ी। गुलमुहम्मद भी आ गया था। उसने पूछा-'नन्दराम, तू अच्छी तरह रहा?' 'हाँ जी! यहीं आते हुए कुछ वजीरियों का सामना हो गया। दो को ठिकाने लगा दिया।