पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/१५४

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'चुप रहिए शाहजादा साहब! आप धीरे से नहीं बोल सकते, तो चुप रहिए।' । यह कहकर नूरी ने एक बार फिर पीछे की ओर देखा। वह चंचल हो रही थी, मानो आज ही उसके वसन्त-पूर्ण यौवन की सार्थकता है और वह विद्रोही युवक सम्राट अकबर के प्राण लेने और अपने प्राण देने पर तुला है। कहते हैं कि तपस्वी को डिगाने के लिए स्वर्ग की अप्सराएँ आती हैं। आज नूरी अप्सरा बन रही थी। उसने कहा-'तो मुझे काश्मीर ले चलिएगा?' याकूब के समीप और सटकर भयभीत-सी होकर वह बोली-'बोलिये, मुझे ले चलिएगा? मैं भी इन सुनहरी बेड़ियों को तोड़ना चाहती हूँ।' 'तुम मुझको प्यार करती हो नूरी?' 'दोनों लोकों से बढ़कर।' नूरी उन्मादिनी हो रही थी। 'पर मुझे तो अभी एक बार फिर वही करना है, जिसके लिए तुम मना करती हो। बच जाऊँगा, तो देखा जाएगा!' यह कहकर याकूब ने उसका हाथ पकड़ लिया। नूरी नीचे से ऊपर तक घबराने लगी। उसने अपना सुन्दर मुख याकूब के कन्धे पर रखकर कहा–'नहीं, अब ऐसा न करो, तुमको मेरी कसम!' सहसा चौंककर युवक फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। और नूरी जब तक संभली, तब तक याकूब वहाँ न था। अभी नूरी दो पग भी बढ़ाने न पायी थी कि मादम तातारी का कठोर हाथ उसके कन्धों पर आ पहुँचा। तातारी ने कहा-'सुलताना तुमको कब से खोज रही है?' सुलताना बेगम और बादशाह चौसरी खेल रहे थे। उधर पचीसी के मैदान में सुन्दरियाँ गोटें बनकर चाल चल रही थीं। नौबतखाने से पहले पहर की सुरीली शहनाई बज रही थी। नगाड़े पर अकबर की बाँधी हुई गति में लड़की थिरक रही थी, जिसकी धुन में अकबर चाल भूल गये। उनकी गोट पिट गयी। पिटी हुई गोट दूसरी न थी, वह थी नूरी। उस दिन की थपकियों ने उसको साहसी बना दिया था। वह मचलती हुई बिसात के बाहर तिवारी में चली आयी। पाँसे हाथ में लिये हुए अकबर उसकी ओर देखने लगे। नूरी ने अल्हड़पन से कहा-'तो मैं मर गयी?' 'तू जीती रह, मरेगी क्यों?' फिर दक्षिण नायक की तरह उसको मनोरंजन करने में चतुर अकबर ने सुलताना की ओर देखकर कहा-'इसका नाम क्या है?' मन में सोच रहे थे, उस रात की आँख-मिचौली वाली घटना! 'यह काश्मीर की रहने वाली है। इसका नाम नूरी है। बहुत अच्छा नाचती है।'सुलताना ने कहा। 'मैंने तो कभी नहीं देखा।' 'तो देखिए न।' 'नूरी! तू इसी शहनाई की गत पर नाच सकेगी?' 'क्यों नहीं जहाँपनाह?' गोटें अपने-अपने घर में जहाँ-की-तहाँ बैठी रहीं। नूरी का वासना और उन्माद से भरा