पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

पांचवां वर्ष।

सन् १०१८।

चैत सुदी २ संवत् १६६६ मे चैत सुदी १

संवत् १६६७ तक।

—————

५ मुहर्रम (चैत सुदी ७) शुक्रवार सं० १६६६ को हकीम अली मर गया। यह बड़ा हकीम था इसने अकबर बादशाहके समयमें बू अलीसीना(१) के कानूनकी टीका लिखी थी। बादशाह लिखता है कि यह दुष्टात्मा और दुर्बुद्धि था।

खान आलम।

२० सफर (जेठ बदी ७) को मिरजा बरखुरदारको खानआलम का खिताब मिला।

३३॥ सेरका तरबूज।

फतहपुरमे इतना बड़ा एक तरबूज आया कि बादशाहने वैसा अबतक नहीं देखा था तुलवाया तो ३३॥ सेरका हुआ।

सौमतुलादान।

१८ रवीउलअव्वल (आषाढ़ बदी ५) चन्द्रवारको बादशाहकी सौम वर्षगांठका तुलादान उनकी मा मरयममकानीके भवनमें हुआ। जो स्त्रियां वहां जुड़ गई थीं उनको बादशाहने उसमेंसे कुछ रुपये दिलाये।

दक्षिण पर चढ़ाई।

बादशाहने दक्षिणके कामों पर एक शाहजादेका भेजा जाना आवश्यक समझ कर परवेजको भेजने और उसके वास्ते सफरकी तय्यारी कर देनेका हुक्म दिया।


(१) बूअलीसीना मुसलमानोंमें बड़ा हकीम होगया है उसने जो पुस्तक वैद्यकविद्याकी बनाई है उसका नाम कानून बूअली हैं।