पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१८५

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संवत् १६७० । और हरका निजधर्म पर चलता है। हरेक साल में एक दिन अपना योहार मनाता है। पहला मामला अर्थात् बद्धको जाननेवाला उत्सवी छ की है- १ विद्या पढ़ना । २ दूसरों को पढ़ाना ३ आग पूजना ४ दूसरोंसे पुजाना ५ दान लेना ६ दान देना इनका त्यौहार. सावनके अन्त में होता है जो बरसातका दूसरा महीना है। इस दिनको पवित्र समझाकर पुजारौ लोग नदियों और तालाबों पर चले जाते हैं और मन्त्र पढ़कर डोरों और रंगे हुए तागों पर फूंकते हैं। दूसरे दिन जो नये साल(१) का पहिला दिन होता है उन डोरीको राजों और बड़े लोगोंके हाथों में बांधते हैं और शकुन समझते हैं। इस डोरको राखी यानी रक्षा कहते हैं। यह दिन तीरके महीने में आताहै। जब खूर्य कर्कराशियर होता है। दूसरा क्षत्रिय वर्ण है जो खत्री भी कहलाता है। क्षत्रिय वह हैं जो अन्याय करने वालोंसे दोनोंको रक्षा करें। इसके तीन धर्म हैं।- १ आप पढ़े दूसरोंको न पढ़ावे . ... .. २ श्राप भाग पूजे दूसरेको न पुजवावे। ३ श्राप दान दे दूसरीका दान न ले। ___ इसका त्यौहार विजयादशमी है इस दिन सवारी करना और शत्रु पर चढ़कर जाना इसकी समझमें शुभ होता है। रामचन्द्रन जिसको यह लोग पूजते हैं इसी दिन चढ़ाई करके अपने नैरोको जीता था। इस दिनको उत्तम समझते हैं हाथी घोड़ोंको खजाकर पूजते हैं। . . यह दशहरेका दिन शहरेवरके महीने में आता है जब सूर्य (१) इस लेखसे जाना जाता है कि ढूंढार और मेवाड़की भांति आगरेमें भी उस समय लौकिक, संबल्सर भादो बदी १ से बदला जाता था। . [ १५ ]