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संवत् १६७०

फिर क्या सबब है कि तू अब इस लड़ाई अपना पांव खेंचता है। चाहिये कि शुभचिन्तक और खामिसत रहकर शाहजादेको रात दिन सेवा करता रहे अगर इसके विरुद्ध किया तो याद रख कि अपना बिगाड़ तू आपहो करेगा।

इब्राहीमने जाकर यह सब बातें खानाजमसे कहीं परन्तु कुछ लाभ न हुआ। वह अपनी हठसे नहीं हटा। तब खुर्रमने उसको पहरे में रखकर बादशाहसे अर्ज कराई कि इसका यहां रहना अच्छा नहीं है। क्योंकि यह खुसरोके संबंधसे काम बिगाड़नेको चेष्टाम है। बादशाहने महाबतखांको हुक्म दिया कि जाकरः उदयपुरसे उसको लेआवे और उसके बालबच्चोंको मंदसोरसे अजमेर में लानेक लिये वधूतात(१) के दीवान सुहम्मद तकीको भेजा।

दलपतरायका मारा जान्ग।

११ (चैत्र बदी ६) को पहले खबर पहुंची कि रायसिंहका बेटा दलपत जो दुष्ट खभाव था अपने भाई सूरजसिंहसे जिसे बादशाहने उसके जपर भेजा था लड़ाई हारकर सरकार हिमारके एक किले में घिरा हुआ है और इसके साथही वहां फौजदार हाशिम और उप्त जिलेके जागौरदारोंने दलपतको पकड़कर भेज दिया। बाद- शाहने उसको मरवा(२) डाला क्योंकि उसने कई बार कुराई को थी। इस कामके इनाममें सूरजसिंहके मनसबमें पांच सदी जात और दो हजार सवारको वृद्धि हुई।

अलमकमान हाथी।

१४ (चैत्र बदौ ८) को खुर्रमको अर्जी पहुँचौ कि आलमकमान हाथी जिस पर रानाको बड़ा घमण्ड था सतरह दूसरे हाथियों


(१) कारखानों।

(२) दलपतसे क्या क्या अपराध हुए थे इसका कुछ व्योरा ऊपर नहीं आया है, और न इस बातका कुछ उल्लेख है कि सूरजसिंह दलपतके अपर कब और क्यों भेजा गया था।

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