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पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२८२

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जहांगीरनामा। ८ (आषाढ़ बदी ११) को बादशाहने राजा राजसिंह कछवाहे के बेटे रामदासको राजतिलक देकर राजाको पदवी दी। कन्धारके हाकिम बहादुरखांने नौ घोड़े, नौ थान कपड़ोंके और दो चमड़े काली लोमड़ियोंके भेटमें भेजे। . इसी दिन गढ़ेके राजा पेमनारायणने आकर सात हाथी भेट किये। १३ (आषाढ़ सुदी २) को गुलाब छिड़कनेका त्यौहार हुआ। . १४ (आषाढ़ सुदी ३) को बांसवाड़ेके रावल उदयसिंहो बेटे रावल समरसिंहने आकर तीस हजार रुपये तीन हाथी एक जड़ाज पानदान और एक जड़ाऊ-कमरपट्टा भेट किया। . १५ (आषाढ़ सुदी ४) को बिहारके सूबेदार इब्राहीमखां फत- हजंगने ८ हीरे वहांको खानसे निकले हुए तथा वहांके जमीन्दार.. के संग्रह किये हुए भेजे । उनमें एक हीरा १४॥ टांकका था वह एक लाख रुपयेका आंका गया। दक्षिण में सफलता। २८ (सावन बदौ २) गुरुवारको बारहका सैयद अबदुलह सुल- तान खुर्रमको अर्जी लेकर आया जिसमें लिखा था कि दक्षिणके सब दुनियादार अधीन होगये। अहमदनगर आदि किलोंको कुञ्जियां आगई। बादशाहने खुदाका शुक्र करके टोड़ेका परगना जिसकी उपज दो लाख रुपयेको थौ नूरजहां वेगमको दिया। क्योंकि यह बधाई उसके द्वारा उसके पास पहुंची थी। इससे २५ दिन पहले एक रातको बादशाहने दीवानहाफिजमें फाल देखी थी तो काम बन जानेकी बात निकली थी। बादशाह लिखता है- "मैंने बहुत कामों में दीवानहाफिजको देखा है। जो उसमें निकला वही हुआ। ___ दोपहर बाद बादशाह बेगमों सहित “हफ्तसंजर" महलको देखने गया संध्याको लौट आया। यह सतखण्डा प्रासाद सुलतान महमूद खिलजीका बनाया हुआ है। प्रत्येक खण्डमें चार चार