संवत् १६७४। २७७ जैसा उचित था कर दिया। जो सना उसके साथ थी उसमेंसे तौरस हजार सवारों और सात हजार वन्दनचौ पदातियोंको वहां छोड़ कार भेष पचौत हजार सवारों और दो हजार तोपचियोको साथ पिताको सेवामें उपस्थित होनेके लिये कूच किया। खुर्रमका दक्षिण विजय करके आना। बादशाह लिखता है-"मेरे राज्यशासनके बारहवें वर्ष २० महर गुरवार ११ शब्बाल सन १०३६ हिजरी (अाखिन सुदी १३ संवत् १६७3) को तीन पहर एक घड़ौ दिन व्यतीत होने पर मांडोंके किले में खुर्रम कुशल और विजय पूर्वक पन्द्रह महीने ग्यारह दिन का वियोग रहनेके पीछे सेवामें उपस्थित हुआ। जब “कोरनिश" और "जमीं बोस” विधि पूर्वक कर चुका तो मैंने उसको झरोके पर बुलाया। अति स्नेह और अनुराग वश अपनी जगइसे उठकर छातीसे लगाया। वह जितना कुछ विनय और जनतामें अग्रह करता था उतनाहौमैं कृपा और अनुग्रह में बढ़ता जाता था। मैंने उसको अपने पास बैठनेका हुक्म दिया। उमने एक हजार मोहरें और १००० रूपये नजर तथा एक हजार मोहरे और १००० रुपये न्योछावर किये। उस समय इतना अवकाश न था कि वह अपनी सारी भेंट दिखाता । इसलिये “सर- नाक" नामक हाथी जो आदिलखांको भेटके हाथियोंभ शिरोमणि था, उत्तम रत्नोंकी पेटौके साथ भेट किया। फिर बखशियोंको हुक्म हुआ कि जो अमौर उसके साथ आये हैं वह मनसबोंके क्रमसे सेवामें आवें। पहले खानजहां उपस्थित हुआ। मैंने उसको ऊपर बुलाकर पद्मकनलोंके चूमनेका मान प्रदान किया। उसने एक हजार मोहरें २००० रुपये रत्नों और जड़ाऊ पदार्थों की पेटी सहित भेट किये। उसमेंसे जो मैंने स्वीकार किये उनका मूल्य ४५००० था।" . फिर अबदुल्लहखांने चौखट चमकर एक हजार मोहरें नजर की उसके पीछे महाबतखांने जमीन चमकर एक सौ मोहरें एक हजार रुपये और एक गठड़ी रत्नों तथा जड़ाऊ-पदार्थोंको भेट की। वह [ २४ ]
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