पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३१४

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जहांगीरनामा

२८८ जहांगीरनामा। १६:३४, २४ दिसम्बर २०१९ (UTC)~~ था तो एक दिन शराबको मजलिसमें एक गरीब आदमीको जो कुछ ठठोल भी था, बेसमझौसे हंसी को कोई बात कहने पर उसी जगह मरवा डाला था। इन दोनों बातोंके सुननेसे बादशाह ने कोप कार के बखशियोंको हुक्म दिया कि उसके १००० दुअख्ये और तिअस्यै सवारोंको इकाही रखकर ७० लाख दाम जो बढ़ें वह जागीरमेंसे काटलें। शाहआलमका मकबरा। इसी जगह कुतुबपालमर्क बेटे शाहपालमका मकबरा भी है जिसको सुलतान महमूद बेगड़ेके पोते सुलतान मुजफ्फरके अमीर ताजखां नामौने एक लाख रुपये लगाकर बनाया था। शाहा- लम सुलतान महमूदके समय में सन ८८० ( संवत् १५३२ ) में मरा . था गुजरातियोंका उस पर बड़ा प्रेम था और वह कहते थे कि शाहआलम मुर्दो को जिला दिया करता था। उसके बापने मना कर दिया था तोभी एक सेवकके मृतपुत्रको अपने पुत्रके प्राण देकर . जिला दिया। उसका पुत्र उसी समय मर गया और सेवकका पुव जो उठा। बादशाह लिखता है-"मैने यह बात उसके गद्दीनशीन सैयद महमूदसे पूछी थी। उसने कहा कि मैं अपने बाप दादशि ऐसाही सुनता आया हूं। आगे ईश्वरं जाने। यह बात अकलसे दूर तो है पर लोगों में बहुत विख्यात है इसलिये अद्भुत समझकर लिखी गई।" सुहत। बादशाहक अहमदाबाद में प्रवेश करनेका मुहर्त सोमवारको था इस लिये रविवारको भी बादशाह कांकरिया तालही पर ठहरा रहा। , - हजार सवार दुपस्था और तिअस्याको तनखाहके, ७० लाख दाम अर्थात् पौने दो लाख रुपये होते थे वह जागोरसे काटे गये एक सवारका १७५० सालाना और १४:४०४ पाई महोना हुआ।