पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३१९

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संवत्१६७४।

संवत् १६७४। चन्द्रसेन । १ बहमन (माघ बदौ ८) शनिवारको चन्द्रसैन ने जो इस देश . के मुख्य जमींदारों से था चौखट चूसकर ८ घोड़े थेट विाये । . . , राजा कल्याणको हाथौ । २ (माघ वदी १०) रविवारको बादशाहने ईडरके राजा कल्याण और सय्यद मुस्तफा तथा मौरफाजिलको हाथो दिये। शैख अहमद खट्टको जियारत। ___३ (माध बदौ ११) चन्द्रवारको बादशाह बाज और जुरों के शिकारको निकला। रास्ते में पांच सौ रुपये न्यौछावर दिये । उधर हो शख अहमद खटूको नियारत थी। बादशाइने वहां जाकर फातहा पढ़ा। यह शैख गांव खट्टू परगने नागोरमें पैदा हुअा। अहमदाबाद का बसानेवाला सुलतान अहमद इसका भक्त था। यहांके लोगोंकी इसमें बड़ी श्रधा है। शुक्रवारको रातको बहुतसे छोटे बड़े मनुष्य जियारत करने पाते हैं। .. सुलतान अहमदका वेश्य सुलतान मुहम्मद उसकी कबर पर एक बड़ा मठ बनाने लगा था जो उसके बेटे सुलतान कुतुबुद्दीनके समयमें पूरा हुआ। यहां दक्षिण दिशा में एक बड़ा पका तालाव उसौका बनाया हुआ है। गुजराती बादशाहोंको कबरें इसी तालाब पर हैं जिनसें सुलतान महमूद बैगड़ा, उसका बेटा सुज- फ्फर, सुजफ्फरका पोता महमूदशहौद जो गुजरातका अन्तिम बादशाह था सोये हुए हैं। महसूदको मूंछे मोटी और सुड़ी हुई थौं जिससे उसको वैगड़ा कहते थे। इन कबरों के पासही इनके सरदारोंजो भी कबरें हैं। बादशाह लिखता है-"शैखका मकबरा अति विशाल और विमल है ५ लाख रुपये इसमें लगे होंगे।" + यह हलवदका झाला राजा था।