मेरे बापके हाथ बेच दिया था। उन्होंने उसको दक्षिणसे बुलाया। वह मुझसे लाग रखता था और हमेशा ढके कुपे बहुतसी बातें बनाया करता था। उस समय मेरे पिता फसादी लोगोंसे मेरी चुगलियां सुनकर मुझसे नाराज थे। मैं जान गया था कि शेखके आनेसे यह नाराजी और बढ़ जावेगी जिससे मैं हमेशाके लिये अपने बापसे बिमुख होजाऊंगा। इस बरसिंहदेवका राज्य और के मार्ग में पड़ता था और यह उन दिनों बागी भी होरहा था। इसलिये मैंने इसको कहला भजा कि यदि तुम उस फसादौको राहमें मार डालो तो मैं तुम्हारा बहुत कुछ उपकार करूंगा। राजाने यह बात मानली। शैख जब उसके देशसे होकर निकला तो इसने मार्ग रोक लिया और थोडीसी लड़ाई में उसके साथियोंको तितर बितर करके शेखको मारा और उसका सिर इलाहाबादमें मेरे पास भेज दिया। इस बातसे मेरे पिता ना राज तो हुए परन्तु परिणाम यह हुआ कि मैं बेखटके उनके चरणों में चला गया और वह नाराजी धीरे धीरे दूर हो गई।
३० घोडोंका दान।
बादशाहने तवेलेके कर्मचारियोंको हुक्म दिया कि नित्य ३० घोड़े दानके लिये लाया करें।
मिरजाअली अकबरशाहीको चार हजारी मनसब और संभल की सरकार जागीरमें मिली।
अमीरुलउमराको एक उत्तम बात।
बादशाह लिखता हैं-- "एक दिन किसी प्रसङ्ग से अमोल्लउमरा ने एक बात अर्ज की जो मुझे बहुत पसन्द आई। उसने कहा कि ईमानदारी और बेईमानी कुछ धन मालहीमें नहीं देखी जाती है, वरन यह भी बेईमानी है कि जो गुण अपनों में न हो वह दिखाया जावे और जो गुण दूसरों में हो वह छिपाया जावे। वेशक यह बात सही है। पास रहनेवालोंको चाहिये कि अपने और पराये