पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१०६

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हिंदुओं की तरह निब न थे। वे अपने सुपीते के लिये समय- समय पर कानून--स्मृतियों में रद्दोबदन करते रहे थे । अनि भी आज के दुिओं की तरह जाति-पति । काल-कोठरी के कैदी होते, तो वे शक, हुए और यूधी अदि दूसरी जातियों की, समय-समय पर भारत में आती हैं, इङ्गम करके अपना इ-मसि न बना सकते । आज उन अतियों की अलग सत्ता का पता सक महीं चलती । वे सब हिंदू-ममान में घुल-मिल गई । इधर मिस्टर अमृतलाल राय जर्नलिस्ट भिन्न-भिन्न जाति के हिंदुओं का भी आपस में रोटी-बेटी का व्यवहार सहन नहीं कर सकते । यदि पौराणिक काम के स्मृतिकारों ने अपने से पहले महर्षियों के रीति-रिवाजों पौर कानूनों को रद्द कर दिया, तो क्या में अधिकार नहीं कि इम इन मकारों को उठाकर एक पर रख ३१ अछ। अप स्वार्थ सिद्ध होता है, वहाँ तो आप शास्त्र की दुहाई देने लगते हैं, पर अह आपके स्वार्थ को प्रच होती है, वह अप शाम को मदारी थैना मार गत-प्रमाण या जाथ मेद ठग देते हैं, और कहते हैं, उसमें से तो जैसे चाहो, वैसे ५माण मिल जाते हैं। अंतरजातीय विवाह की अदि अवश्य और उपयोगिता न होती, तो शे विद्वान् इम बिल को पास कराना चाहते हैं, वे व्यर्थं अपनी शक्ति और समय का ना क्यों करते ? यदि आप द्वापर में होते सो रुम और सुभद्रा के साथ श्रा-वह न करने के लिये कृष्ण और अर्जन से भी आपके पड़ोस में 'श की दृम' सोल मे ३ कारण दंडनीय दराते । पर उस आस के लोगों ने इस शराब की दुकान पर कुछ आपत्ति नहीं की, और इनकी संतान से वायभाग का अधिकार नहीं बना । । आक्षेप-समाज-हां बंधी कानून आ प्रधान अधार दो बातें होनी चाहिए--(१) क्षिसित शाबा नून या स्मृतियाँ, (३)