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सृष्टि की उत्पत्ति

जाति-भेद क्या है ?

मनुष्य-जाति उत्पन्न होने के पश्चात् आज तक भी एक जाति है। यह पहिले भी एक जाति थी और अब भी एक है और आगे भी एक ही रहेगी । इस विषय में सैकड़ों वेदमंत्रों के प्रमाण विद्यमान हैं। जिज्ञासु पाठक श्रीमान् पं० शिवशंकरजी काव्यतीर्थ की बनाई हुई जातिनिर्णय नामक पुस्तक में देख लें । उस में वेद, सांख्य, वैशेषिक, न्याय, बृहदारण्यक उपनिषद्, महाभारत, भागवत आदि ग्रंथों के प्रमाणों से यह भलीभांति सिद्ध किया गया है कि मनुष्य जाति एक है।

प्राचीन काल में मनुष्य-जाति के दो भेद माने जाते थे-एक आर्य और दूसरा दस्यु । आर्य शब्द का अर्थ वेद से लेकर आधुनिक काल के ग्रंथों तक में श्रेष्ठ, स्वामी, गुरु, सुहद्, पूज्य, यशानुष्ठानकर्ता, धर्मात्मा, शिष्ट, विद्वान्, आस्तिक, सभ्य, शूरवीर आदि बताया गया है और दस्यु शब्द का अर्थ-चोर, डाकू, असभ्य, छली, कपटी, दुराचारी, नास्तिक, अनार्य आदि बताया गया है। बहुत थोड़े में यदि कहना चाहें तो इस प्रकार कह सकते हैं कि मनुष्य-जाति में केवल दो ही भेद पाये जाते हैं, एक अच्छे और दूसरे बुरे।

यद्यपि इच्छा नहीं थी कि मनुष्य-जाति के एक होने के विषय में कोई शास्त्रीय प्रमाण पेश किया जावे, क्योंकि वर्तमान