पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१९)
जात-पाँत के पक्ष में कुछ युक्तियां

जात-पाँत के पक्ष में कुछ युक्तियां

यहां तक मैंने इस प्रश्न पर विचार किया है मनुष्यमात्र एक जाति है । यद्यपि उदारहृदय विद्वानों ने भारतवर्ष से इस जात-पाँत नाम की राक्षसी को ध्वंस करने का प्रयत्न आरंभ कर दिया है परन्तु कुछ स्वार्थी भारत की अवनति ही नहीं बल्कि सर्वनाश की ओर ध्यान न देकर भारतनाशक गौरव भंजक इस प्रथा को जारी रखने का ज़ोर लगा रहे हैं। घर घर में इसकी चर्चा हो रही है तो भी यह इसलिये लीपापोती कर रहे हैं कि जितने दिन टले उतना ही उनके लिये अच्छा है। पाठक उनकी युक्तियां सुनें जो वे दे रहे हैं और फिर विचारें कि क्या यह धोखा देना नहीं है ?

(१) देखो वृक्ष एक जाति है और आम, जामून, बङ, पीपल आदि उनमें जातियां हैं। इसी प्रकार मनुष्य एक जाति तो है परन्तु उनमें भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनियां, कायस्थ, सुनार, चमार आदि जातियां हैं। जब पशुओं, पक्षियों में यहांतक कि वृक्षों में ईश्वर ने जातियाँ बनाई तो मनुष्यों में क्यों न बनाता? धन्य हो महाराज ! युक्ति तो अच्छी थी, कृपानिधान ! जाति का लक्षण समान आकृति है । इसलिय जहां कहीं भी यह लक्षण घटे वहाँ एक जाति माननी पड़ेगी । जामून, आम, बङ, पीपल जिस प्रकार पहचाने जाते हैं क्या कायस्थ, सुनार, नाई,