पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०
जाति-भेद का उच्छेद


का राजनीतिक समस्या से भारी सम्बन्ध है, उन्हें शासन-विधान तैयार करने में सामाजिक प्रश्न के साथ भी हिसाव चुकाने पर विवश होना पड़ा । कहें तो कह सकते हैं कि साम्प्रदायिक बँटवारा सामाजिक सुधार की उपेक्षा और उसके प्रति उदासीनता दिखाने का फल है । यह सामाजिक सुधार-दल की विजय है, जो दिखलाती है कि यद्यपि वे हार गये थे, तो भी उनका सामाजिक सुधार की महत्ता पर ज़ोर देना ठीक ही था । सम्भव है, अनेक सज्जन मेरे इस परिणाम के साथ सहमत नहीं होंगे। यह विचार लोगों में फैल रहा है और इसे मान लेने में आनन्द भी आता है कि साम्प्रदायिक बँटवारा अस्वाभाविक है और यह अल्प संख्याओं और नौकरशाही ( bureaucracy ) के बीच एक अपवित्र सन्धि है।

इतिहास इस बात का समर्थन करता है कि राजनीतिक क्रान्तियों के पहले सदा ही सामाजिक और धार्मिक क्रान्तियाँ होती रही हैं। लूथर द्वारा जारी किया हुआ धार्मिक संस्कार यूरोपीय लोगों के राजनीतिक उद्धार का पूर्व लक्षण था । इंग्लेण्ड में प्यूरीटिनिज्म ( Puritinisnism ) राजनीतिक स्वतन्त्रता की स्थापना का कारण हुआ । प्यूरीटिनिन्म ने नये संसार की नींव रखी। प्यूरीटिनिज्म ने ही अमेरिकन स्वतन्त्रता का युद्ध जीता । यह प्यूरीटिनिज्म एक धार्मिक आन्दोलन था। यह बात मुसलिम साम्राज्य के विषय में भी सत्य है। अरबों के राजनीतिक शक्ति बनने के पहले, हजरत मुहम्मद उनमें एक पूर्ण धार्मिक क्रान्ति उत्पन्न कर चुके थे । भारतीय इतिहास भी इस परिणाम का समर्थन करता है । चन्द्रगुप्त की चलायी हुई राजनीतिक क्रान्ति से‌