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जात-पांँत का गोरखधंधा


गई है, उसकी बुद्धि का इस जज-बँधन ने कैसा दिवाला निकाला है। अच्छा अब कलेजा थाम लीजिये और सुनिये-

मुन्नू स्वामी नाम के एक ब्राह्मण नामधारी की स्त्री के पेट में दर्द हुवा। रात्रि का समय था।६ बज चुके थे। उस नाम के ब्राह्मण ( पाठक क्षमा करें मुझे ऐसे मनुष्य-पशु को ब्राह्मण कहते हुये लज्जा आती है ) ने विचार किया कि इस को डाक्टर से दवा दिलाना चाहिये परन्तु दुर्भाग्य से उस ग्राम का डाक्टर थिया जाति का था । मद्रास प्रान्त में थिया जाति अछूत मानी जाती है और वहां का नियम है कि थिया जाति का मनुष्य नाममात्र के ब्राह्मण से ४८ फुट दूर पर खड़ा हो। यदि वह ४४ फिट दूरी पर अजाये तो ब्राह्मण देवता भ्रष्ट हो जाते हैं । और एक दूसरे से बातचीत तो कर ही नहीं सकते।

जब ब्राह्मण देवता को यह विचार आया तो बड़ी चिन्ता में पड़े कि ऐसी दशा में क्या करना चाहिये। बहुत कुछ सेचने के बाद महाराज ने अपनी अगाध बुद्धि की सहायता से इस कठिनाई से बचने का रास्ता निकाल लिया। फौरन फीता लेकर उठ खड़े हुये ।

अपने घर के बाहर दरवाजे से ४८ फिट नाप कर मैदान में एक कुर्सी रखी और सामने मेज लगा । उस पर लेम्प रख दिया और डाक्टर के नाम एक चिट्ठी लिखी । उसमें